साधु की बुटी,,saadhu kee butee
एक जमाने की बात है, जब गांव शहरों में साधु संत , इधर उधर बहुत दिखाईं देते थें, कुच साधु पाखंडी होते थे, तोकुच साधु,ज्ञानवान होते थे,
इन साधुओं में एक साधु ऐसा थां। जो घूमता फिरता नही था, । वह गांव के चौराहे, पर स्तिथ छायादार वट वृक्ष के नीचे , बैठा रहता था,
कारण था उसी किसी दुसरे जगह जाना नहीं पड़ता था, क्यों कि, आस पड़ोस के गांव के लोग इसी महात्मा के
पास आते थे,,।
इस साधु की प्रसिद्धि, दूर दूर के गांव तक फैली हुई थी, यह साधु बहुत ज्ञानी और बुद्धिमान थां, एक दिन एक महिला उस साधु के पास पहुंची, और , अपनी, आपबीती आसू बहाकर सुनाने लगी,
की बाबा पहले मेरे पति मेरे साथ बहुत प्रेम से रहते थें, हंसी खुशी से बाते करते थे, लेकिन अब पता नहीं क्या हो गया है,। जबसे युद्ध से आए हैं, ठीक से नहीं रहते पागलों की तरह बर्ताव करते हैं,। बात, बात पर , कुच भी बर्तन फैंक देते हैं,।अब मुझे उनसे नजरे मिलाने में भी, डर लगता हैं,।
हे महात्मा मेरी सहायता कीजिए, मेरें शौहर को, दुरूस्त कर दीजिए,
लोग कहते है, आपने बनाई हुई बूटी हर जीव मे हर इन्सान मे , फिर से प्रेम पैदा कर देती हैं,। बाबा मेरी आपसे यही विनती है वो बूटी मुझे दे दीजिए,
ताकि मैं अपने पति का प्रेम पा सखू,
महात्मा ने थोड़ा ध्यान लगाया, विचार किया,फिर उस दुखियारी से कहने लगा, हैं देवी मैं, वह बूटी जरूर देता, परन्तु उस बूटी को क्रियान्वित करने के लिए एक चीज चाहिए जो, सिर्फ तुम ही ला सकती हो,
महिला बोली आपको जो चीज चाहिए मुझे बताइए, मैं वो चीज लाकर आपको दूंगी, साधु बोला, मुझे शेरनी की पूंछ के पांच बाल चाहिए, जिससे में बूटी बना सखू ,
अगले दिन महिला,शेरनी की तलाश में जंगल जंगल घूमने लगीं, बहुत खोजने के बाद, घने जंगल के अंदर छायादार झाड के निचे एक शेरनी अपने बच्चों के साथ बैठी हुई दिखाईं दि ,
अब वह महिला शेरनी की तरफ धीरे धीरे जा रही थीं, तो शेरनी उसको देखकर जोरदार दहाड़ी, तो महिला घबराकर , तेजी से भागते हुए वापस आ गई,
अगले दिन फिर शेरनी के पास गई, और फिर से घबराकर वापस आ गई, ऐसा तीन सप्ताह तक चलता रहा,
जब तक कि,
महिला और शेरनी हिल मिल नही जाती एक महीने में शेरनी और महिला हिल मिल गई अब दोनो के मन का डर खत्म हों गया था अब शेरनी ने भी गुर्राना बंद कर दिया थां की यह महीला आती रहती हैं, ऐसा शेरनी को लग रहा था, अब महीला भी शेरनी के और नजदीक जाने लगीं थीं,
एक दिन महीला शेरनी के पास पहुंच गई, थीं, उस महिला के अंदर का डर खतम हों गया था,
अब वह महिला शेरनी के लिए, हर दिन मास लेकर जाती थी, शेरनी भी उस मास को बड़े अच्छे से खाती थी, अब, दोनों में स्नेह और दोस्ती, गई,
वह महीला कभी _कभी बाघिन की पीठ पर से प्यार से हाथ घुमाती थीं, अब येक दिन भी वो आ गया , महीला ने माहोल देखकर बाघिन, के पूछ के पांच, बाल भी,उखाड़ लिए, फिर भी बाघिन नहीं दहाड़ी, ,
महीला बहुत खुश हुई, अब वह जल्दी से जल्दी साधु महात्मा के पास पहुंचना, चाहती थी दौड़ते हुए साधू महाराज के पास पहुंच गई, और कहने लगी , मै बाघिन के पुंछ के पांच बाल ले आई साधु महात्मा साधू ,महाराज आचर्य से महिला की तरफ़ देखने लगे, वाह,,
देवी, तुमने मुस्किल काम को सम्भव कर दिखाया, तुम महान हो तुम अपने शौहर को दुरूस्त कर सकती, हो यह बात कहकर महात्मा साधु ने महिला के हात से बाल ले लिए, और आग में फैंक दिया,, महीला बोली, है साधू महात्मा यह बाल लाने के लिए मैने कितने दिन गुजार, मेरी सारी मेहनत का कोई मोल नहीं रहा, अब मेरे शौहर को, बूटी कैसे मिलेंगी
देवी, अभी तो , तुम्हें किसी भी तरह कि बुटी कि जरूरत नहीं पड़ेगी
बूटी बनकर तैयार है,।
महात्मा साधु बोला, जरा सोचो ,समझो ,और विचार करो ,एक हिंसक जानवर को, बड़े प्यार से तुमने अपना बनाया , जब तुम एक शेरनी को, अपने ताबे में कर सकती हो,
तो एक इंसान को ,ताबे में करना तुम्हारी बाय हात का काम है, ,
जल्दी जाओ जिस तरह से तुमने , एक बाघिन को, अपने हक का किया ,ठिक उसी तरह से अपने शौहर में, प्रेम का भाव उत्पन्न करो ,
अब महीला को, साधु की बात, समझ में आ गई थीं,।
वह समझ चुकी थी, की यही वह बूटी है, । जिससे में अपने शौहर को ठीक कर सकती हूं,।।
" समाप्त"
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