गुरू ने दीया ज्ञान अनपढ़ हुआ मालामालl

गुरु ने दिया ज्ञान
कई साल पहले ,की बात है, तब स्कूल और कॉलेज नहीं,    मास्टर और विद्यार्थी नहीं,,
तब , गुरू, और शिष्य थें, याने की, गुरुकुल चलता थां,। मास्टर को गुरूजी कहा जाता था,। विद्यार्थी को शिष्य कहा जाता था,। तब विद्यार्थी अपने गुरूजी का बहुत आदर ,और, पूजा किया, करते थे, 
        और,गुरूजी अपने विद्यार्थी, को बहुत, स्नेह, और प्यार ,दीया करते थे, तब के जमाने मे गुरू को अपने शिष्य बहुत प्रिए लगते थे,।
     एक बार कि बात है, एक गुरूकुल, मे सभी सिश्य बहुत होशियार थें,। लेकिन उन सभी मे से , 
एक, ही, शिष्य,बहुत आलसी था, और अज्ञानी, भी थां,पढ़ाई मे बहुत कमजोर थां,।
    वह अपने अध्याय अभ्यास से दूर भागता थां,। हर काम में असफल थां, और आज के काम को कल के लिए टाल देता थां ,।
तो वहा के गुरुकुल के गुरूजी को , उस आलसी शिस्य की, बहुत चिंता लगी रहती थी ,। और उसीके बारे में सोचते रहते थे,।
        कि,कहीं, यह, जिवन की परिक्षा में, पराजित, ना हो जाए ,
      सभी ,शिष्य, मे से , सिर्फ़ यही एक, शिष्य पीछे ना रह जाय,। 
     ऐसा इन्सान मेहनत किए बिना ही फल की इच्छा रखता है, वो जल्दी से, कोई भी फ़ैसला नहीं ले पाता,                    अगर ले भी ले तो उस पर काम नहीं कर पाता, और भाग्य से मिले सुअवसरो का लाभ नहीं ले पाता,
     गुरूजी ने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक कल्याण कारी योजना बनाई,।
गुरूजी ने,  एक दिन एक काला सा फत्तर  उसके हात में देकर कहां , मैं तुम्हे यह जादू का फत्थर दे रहा हूं ,। जो लोहे को छूते ही सोना बना देगा, तुम जितना चाहो उतना सोना बना लो, और अमीर बन जाओ, मैं, दो दिन के लिए दूसरे गांव जा रहा हूं, लेकिन तुम याद रखना , मैं दूसरे दिन सूर्य,डूबने के बाद यह पत्थर तुमसे ले लूंगा, इतना कह कर गुरूजी दूसरे गांव जाने के लिए निकल गए,।
     अब , शिष्य इस शुभ अवसर को पाकर बहुत खुश हुआ, और सोचने लगा, की अब मेरे पास बहुत सारा सोना होंगा , बहुत सारे नौकर चाकर होंगे , अब मुझे पानी पीने के लिए भी उठना नहीं पढ़ेगा, लेकिन आलसी होने के कारण सारा दिन ऐसे ही बीत गया,  और दूसरा दिन आ गया, उसको पूरा याद थां की आज सोना पाने का दूसरा और आखरी दिन हैं, फिर भी वो आलसी होने के कारण बाजार जा नहीं सका , दोपहर के 2बज रहे थे, अब उसको भूख लग रही थी, सोचा खाना खां लेता हूं , उसके बाद बाजार जाऊंगा और लोहे के ढेर सारे बर्तन लेकर आऊंगा , पहले उसने खाना खां लिया, अब वो तो आलसी था ही , आलसी होने के कारण उसे नींद आ गई , और वह गहरी नींद में सो गया, जब जागा तो सूरज ढलने ही वाला था, तो वह जल्दी _जल्दी तैयार होकर बाजार की तरफ भागने लगा, तो रस्ते में उसे गुरूजी दिखाईं दिए, वो गुरूजी के पैरो को हात जोड़कर कहने लगा, गुरूजी मुझे एक दिन की मोहलत और दे दीजिए, वो जादुई फत्थर अपने पास रखने की याचना करने लगा लेकिन गुरूजी नहीं माने, 
              इस घटना से , शिष्य को एक सीख मील गई , वो समझ गया कि आलस्य उसका सबसे बड़ा शत्रु है, उसे उसके आलस्य पर पछतावा होने लगा , वो समझ गया कि आलस्य उसके लिए , एक श्राफ हैं, उसने प्रण लिया की अब वो कभी आलस्य नहीं करेगा, अब वो कभी काम से जी नहीं चुरायेंगा, और एक सक्रीय व्यक्ती बनकर दिखाएंगा,
    दोस्तो , जिवन में हर किसी को, सुभ, अवसर मिलते रहते हैं, लेकिन कई लोग इसे अपने आलस्य के कारण गवा देते हैं,।
   इसलिए दोस्तो मैं आपसे यही कहना चाहता हूं की अगर आप सुखी: , भाग्यशाली, महान, धनी व्यक्ति बनना चाहते हो, तो आलस्य को त्याग दीजिए, मेहनत किजिए , जागरूकता जैसे गुणों को, अपने अंदर विकसित किजिए, और जब कभी आपके अंदर आवश्यक काम को टालने का विचार आता है,। तो खुद से, एक, प्रश्न्न पूछिए की कल क्यों आज क्यों नहीं???
                              
गुरू ने दीया ज्ञान अनपढ़ हुआ मालामालl


   लेखक, भोजराज, गोलाइत
                  दिनांक_13/03/2022

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