बिखरते, सपने

                     बिखरते सपने
कहानी,एक गरीब परिवार, के दो भाईयों, की हैं।, उन्हें एक, बहन भी रहती है,। जिनके पिताजी, की असमय हि मृत्यु  हो जाति हैं,। 
         और,घर में कमाई करके लाने वाला, कोई नहीं रहता,  फरवरी, का महीना था, पतझड़ का मौसम थां,।
आधे हरे, आधे पीले पत्ते , हवा की वजह से ,
 पेड़ से फड़, फड़ कि, आवाज करके निचे गिर रहेथे, 
         मानो पत्तो की चादर बिछाई गई हों, पैर पड़ते ही पत्ते चरमराहट कि, आवाज कर रहे थे,।                                  ऐसा ही, पतझड़,सुकराज, के दिमाग़ में भी चल रहा था,
    क्योंकि, उसका परिवार बहुत निर्धन और दुखी थां,
   सूखराज, से अपने परिवार का दु:ख, द:र्द गरीबी, और, भूख , देखी नहीं जाती थी, 
     इसी विचार में सुबह_ सुबह, अर्जुन वन, में, सूखे पत्तो के उप्पर पैर  जोर से पटकता हुआ चल रहा थां ।    सुखराज हर दिन एक नया सपना देखता थां,। आज रात में, भी एक सपना देखा था,    
        सोच रहा था कि मैं मां से कहूंगा तो मां गुस्सा करेंगी,। उसकी उम्र दस  वर्ष की हों चुकी थीं, उसका एक छोटा भाई थां, उसका नाम मंगल थां, उसकी उम्र आठ,साल की थी,
    जब उने बिहार से, गुजरात, लाया गया था, उन दिनों वहा पर कपड़ो, का बाज़ार बहुत गर्म थां,
            त्योहार के दिनों में बाजार में इतनी भीड़ होती थी की पाव रखने के लिए भी जगह नहीं मिलती थीं।
दुल्हन की साड़ी, और दूल्हे की सेरवानी सभी चमकीले सितारो से कढ़ाई करके बनाई जाती थी,। गुजरात में गोटे का काम भी बहुत तेजी से चलता था। ऑर्डरों कि भरमार होती हैं,। लेकिन काम करने वाले वर्कर नहीं मिलते थें, 
              काम कि मारा मारी के चलते , दलाल लोग , इधर उधर से काम करने वाले कारागिरो को, लाकर, फैक्ट्री मालिक को अच्छे सौदे में बैच देते थें,।
       फैक्ट्री मालिक उन लोगों को काम की ट्रेनिग देकर जबरदस्ती फैक्ट्री में भेज देता था,। सुकराज बहुत ही होनहार लड़का था, लेकिन गरीबी से मुरझा गया था, 
इनके बापू की, सड़क, दुर्घटना में मौत, हो गई थी,
    जो,वो रूखी_ सूखी रोटी, खाते थे, उससे भी हात ना धोना पड़े,। इसलिए मां दो चार घरों में बर्तन साफ करती थी , 
    क्योंकि सुखराज की मां लाजो कम उम्र में ही विधवा हो चुकी थी।
     और भाई बहनों की जिम्मेदारी सुखराज के उप्पर आ गई थी, मां लांंजो भी दो चार घरों में काम करके, कैसे भी, रोटी का जुगाड़ कर लेती थी,                                    महंगाई के जमाने में, इतने कम रुपए मे क्या, होगा? बच्चो की स्कूल जाना, भी बंद हो गया, क्योंकि, बच्चे के स्कूल पढ़ाने का खर्च,
    और किताबो के पैसे,नहीं जुटा पा रही थी, सुखराज भाई बहनों से बड़ा होने के नाते, अपनी उम्र से कुच जादा ही बड़ा हों गया था,                    
  हर समय अपने परिवार की हि चिंता में लगा रहता था, शुक्रवार के दिन पैदा होने से उसका नाम सुखराज रखा गया था, और छोटा भाई मंगल , मगंलवार, के दिन, जन्मा थां, 
       इसलिए उसका नाम मंगल, रखा था, कोई अच्छा सा नाम सोचा नहीं था, और, नाही,उन पर नामकरण, संस्कार, हुए थें,फिर भीं वो अपने मां के आंखो के तारे थे,।
    सुखराज, को कभी, घर आने में देरी हो जाती तो मां, को बहुत फिक्र होने लगती , सुखराज को विरासत, में मां से थोड़े बहुत गुण मिले थें, 
    क्योंकि मां को कढाई, बुनाई का काम आता था, तो, सुखराज, मां को काम करते हुए देख कर ही,             शिख गया थां , 
सुखराज कि मां, अपने हात से ही साड़ी बनाती थी,           एक साड़ी बनाने में, बहुत सा समय लग जाता था, 
     और जब साड़ी को, बैचती थीं, तो, पै दाम भी कम मिलते थें,।
       एक दिन, सुखराज, रोशन नाम के एक एजेंट से मिला थां, सबसे पहले वो, रोशन से साहुकार कि दुकान, पर मिला थां, 
   जब, वो अपने मां, के हात की बनी साड़ी साहूकार को बैच रहा था,। 
    सूकराज का छोटा भाई, मंगल, भी था, तो वह मंगल, को सामने वाली थड़ी, पर बैठाकर साहूकार से वह मोल भाव कर रहा था, 
     साडीयो का मोल भाव करके जब वह मंगल को सात मे लेकर चौराहे पर आया तब रोशन भी उसके पीछे पीछे आ गया, और प्रेम से दोनो भाइयों को बहला फूसलाने लगा  ,
     कहने लगा बहुत सुन्दर कारागिरि हैं साड़ी कि , लेकिन साहूकार बहुत कंजुस और मख्खी चूस ,       आदमी हैं ,। बैमानी करता है,। कम पैसे देता है, । किसने बनाई है यह साड़ी, सुखराज बोला मेरी मां ने, तो रोशन बोला तुम भी बना लेते हों ? 
      सुखराज, ने कहा, हां मैं भी साड़ी बनाने में, मां की, मदद करता हूं, रोशन बोला अरे वहां, तू तो बहुत काम का निकला ,
                               
बिखरते सपने

  तू मेरे साथ चल, साहुकार, तो तुम्हारे काम के, बराबर पैसे ,भी नहीं देता है, मैं तुम्हे, तुम्हारे काम के बहुत ,पैसे दिला दूंगा ,तुझे अमीर,बना दूंगा,
     फिर तुम्हारी यह गरीबी नहीं रहेंगी इतना रोशन ने कहा, इतना सुन कर सुखराज को अपने सपने सच होते नजर आने लगे,। वह बहुत खुशी से अपने घर गया, और सब बाते, विस्तार से , सुखराज ने मां को बताया, रोशन ठेकेदार ने भीं सुकराज कि मां को लालच देकर, मना लिया, समय कम थां क्योंकि , रोशन , जल्दी निकलने के लिए जल्द बाजी कर रहा था, मां ने दोनो बच्चों को, एक कपड़ो की गठोड़ी देकर घर से विदा किया,। ठेकेदार ने दोनो भाइयों को   ढाबे पर खाना, खिलाया, और बसस्टेंड आकर, गाड़ी, पकड़ ली, बस, गाडी, अपनी पूरी स्पीड में थीं,
मंगल, चलने से बहुत थका,हुआ था, इसलिए गाड़ी में बैठे हुए हि सौ गया,
    लेकिन सुखराज को कहा निंद आने वाली थीं, वो तो मिठे सपने में खोया हुआ थां,           शोचने लगा अब मैं भी पैसा कमाऊंगा और बहुत बड़ा आदमी बनूंगा मेरी मां को किसी के आगे हात नही फैलाना पड़ेंगा , मेरी छोटी बहन की धूमधाम से शादी करूंगाऔर अच्छा सा मकान बनाऊंगा  सोचते सोचते गुजरात आ गया,। गुजरात पहुंचकर ठेकेदार ने दोनों भाइयों को सेट चम्पकलाल के हवाले कर दिया, और अपना हिस्सा लेकर चलता बना,
      अब सुखराज और छोटा भाई मंगल,  चंपकलाल सेट, कि फैक्ट्री में काम करने लगें,। वहा उनके जैसे बहुत सारे बच्चे थें, जो भारत के कोने कोने से लाए गए थे, ।
 उनके रहने खाने पीने का भी पूरा इंतज़ाम नहीं थां, चारों तरफ़ गन्दगी ही गन्दगी थीं, ।
सामान से भरे छोटे छोटे कमरे थें,। वहा पर पहुंचते ही दोनों के खिले खिले हुए चेहरे मुरझाए हुए फूल कि तरह हों गय एक तो खराब और नई जगह दूसरी बात,अपने गांव से बहुत दूर.... उने अपने मां की याद आने लगी,। दिन भर काम करके , बूरी तरह से थक गए थे,। रात को रूखी सूखी खाकर, कहीं के कही छो गए थे, सुबह के 6बजे सभी को उठा दिया जाता था,। एक एक कफ च्याय और उनके साथ तोस दिया जाता था, इसी के साथ उनके दिन की शुरुवात होती थी,। 
      दोपहर में एक एक प्लेट खिचड़ी खाने को दी जाती थी,। देर रात तक फैक्ट्री में बच्चे काम करते रहते थे,। मंगल तो उप्पर के काम करता था , जैसे सामान उठाना ले जाना , झाडू पोछा करना साफ़ सफ़ई करना, रात को सारे बाजार जब बंध हों जाते, थें, तो फैक्ट्री की  लाइट भी बंद कर दी जाती थी, दाल के साथ , रूखी सूखी बासी रोटी खाकर दिन भर के काम से थके होने से जल्दी सो जाते थे,। इंसानियत नाम की फैक्ट्री मालिक के दिल में कोई जगह नहीं थी,। उसे सिर्फ़ काम चाहिए थां, 
फैक्ट्री मे काम करने से सुखराज की तबीयत खराब हों गई थी,मंगल से बड़े भाई  की यह  हालत देखी नहीं जाती थी,। वह कैसे भी करके गली में रहने वाले एक डॉक्टर से बड़े भाई के लिए दवाई ले आया, पहले तो डॉक्टर साहब बीना पैसे के दवाई नहीं दे रहा था, तो मंगल वहा पर ज़ोर ज़ोर से रोकर अपनी स्टोरी और वहा पर मौजूद सभी बच्चों पर हो रहे अत्याचार, की दु:खद भरी कहानी कहने के लिए मजबूर हो गया,। तो किसी अच्छे और भले आदमी ने उस पर तरस खा कर उसे दवाई दिलवा दी,। कुच ही दिनों में सुखराज की तबियेत ठिक हों गई, यह डॉक्टर की दवा का असर थां, या मां की दूवाओ का कमाल, मंगल जब दवाई लेने के लिए मेडीकल की दूकान में गया था, उस समय वहा पर कई प्रकार के लोग मौजूद थे,। उस की दु:ख भरी बात ,एक से दूसरे तक दूसरे से तीसरे तक, आग की तरह फैलते चली गई, खबर समाचार पत्रोंऔर विरोधी यो तक पहुंच गई, मीडिया ने इस खबर को ब्रेकिंग न्यूज़ बना कर खूब उछाला , यह बात बाल श्रमिक विभाग तक भी पहुंच गई, बाल श्रमिक विभाग वाले, और पोलिस विभाग वाले तुरन्त सतर्क हो गए, देस के समाचार पत्र में यह खबर, ब्रेकिंग न्यूज,में प्रसारित की गई,
     की कढाई बुनाई के फैक्ट्री से बारह बाल श्रमिक को छुडाया गयाऔर फैक्ट्री के मालिक को गिरफ्तार किया गया, सभी बच्चों की उम्र, छः से बारह साल की थी ,उन्हें बिहार और आसपास के गाओ से गुजरात लाया गया था, थानेदार ने बताया कि मुजरिम यह कारखाना  बहुत वर्षों से चला रहा था उस सेट को पीटने के बाद, उसने रोशन जैसे कहीं ठेकेदारो का नाम बताया, उन सभी ठेकेदारों को गिरफ्तार कर लिया गया था, रोशन खुद बिहार में गया जिल्ले मे रहता था, और अपना जिवन चलाने के लिए ऐसे ही, दलाली का काम किया करता था, पुलिस को किसी आसपास रहने वाले लोगों से यह बात पता चली, थीं की छोटी उम्र के बच्चों से फैक्ट्री मे काम करवाया जाता हैं, और उने प्रताड़ित किया जाता हैं,। इसी से पुलिस ने बाल मानव अधिकार के तहत ये छापा मारा गया था,। और बाल श्रमिक को आजाद करवाकर उने उनके घर भेज दिया थां,। एक तरफ सूखराज अपने बिखरते सपने को देखकर बहुत दु:खी हुआ, तो दूसरी तरफ अपनी मां से गले मिलकर बहुत खुश हुआ, 
                  
                             


                    "  कहानी समाप्त"
                               लेखक भोजराज,गोलाईत

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