निलकमल,,nilkamal

          , नीलकमल चित्रसेन,,1968,
यह कहानी,1968, में बनी फिल्म, नीलकमल पर आधारित, है, जिसके मुख्य कलाकार,
 वहीदा रहमान.राजकुमार. मनोज कुमार. बलराज साहनी. रामाएन तिवारी. ललिता पवार. शशि कला. यह 1980और 1990के दशक के चर्चित सुप्पर स्टार थें.!
ललीता पवार. सास और मां. के रोल में. खलनाइका की भुमिका निभाती हैं.!
    राजकूमार. चित्रसेन के रोल में. खुबसूरत और जवान नज़र आते हैं.!    
    इस फिल्म की हीरोइन,वहीदा रहमान,राजकुमारी, नीलकमल, के किरदार मे , बेहद खूबसूरत और जवान नजर आती हैं,
       चित्रसेन, चित्रपुर नगर के राजा के दरबार में, चित्र कला, और शिल्प कला का काम किया करते थे,। उन्होंने अपनी कला से चित्रपुर के, राजवाड़े मे, राजकुमारी के प्यार मे,रंगमहल बनाया थां, रंगमहल के अन्दर, चित्रसेन ने, फत्तरो को तरासकर अनेक, नृर्तिकाओ की मूर्तियां राजकुमारी की मनमोहक मूर्ति, और कई प्रकार की खूबसूरत,मूर्तियां बनाई थीं, इतनी खूबसूरत मूर्तियां देखकर चित्रपुर,के राजा बहुत, हर्षित, और प्रसन्नचीत,हो गए थे, और चित्रसेन को, मु मांगा ईनाम देना चाहते थे, राजा ने चित्रसेन से कहा, चित्रसेन हम तुमारे, कला के कद्रदान है,
    तुम जो मांगोगे हम तुम्हे दे देंगे, अब चित्रसेन ने शोचा, यह अच्छा मौका है,। ईनाम, मे, राजकुमारी को ही मांग लेता हूं, ,
    क्योंकि चित्रसेन राजकुमारी, से बहुत प्यार करता थां, और राजकुमारी, भीं, चित्रसेन से बहुत प्यार करती थी, जब चित्रसेन ने, राजकुमारी को मांगने का प्रस्ताव रखा, तो, महाराज क्रोधित हो गए, महाराज ने क्रोधित होकर चित्रसेन को, दीवारों में चुनवा दीया, और राजकुमारी निलकमल को उसके चाची के सात नैनिहाल भेज दिया, ताकि उसको कुच पता न चले ,
       जब चित्रसेन को दीवारों में कैद किया जा रहा था, तो उसके,मु:से, यह दर्द भरे,और सुरीले सुर, निकल रहे थे, इस प्रकार से,,
       आ..जा. आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार.... गाने के अन्त तक, चित्रसेन, को दीवारों मे पुरी तरह से, कैद कर लिया जाता हैं,। लेकिन,चित्रसेन की आत्मा भटकती रहती हैं,
नीलकमल, भी चित्रसेन कि याद में, खाना पीना सोड देती हैं, और एक दिन, वो भी दुनिया सोड़ कर चली जाती हैं,।
   इस घटना को बीते हुए,कई,सदिया गुजर जाती हैं,
निलकमल, दूसरे शहर में, दोबारा जन्म लेती हैं, इस जन्म में निलकमल का नाम, सीता रखा जाता हैं,।
       जब सीता कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके अपने, दोस्तो के सात टूर पर, चित्रपुर शहर में, रंगमहल, देखने के लिए, जाती हैं,
    तो, चित्रसेन की आत्मा सीता को मोहित करके अपनी तरफ़ खींचती हैं, सीता रंगमहाल में, चित्रसेन कि कब्र के पास जादू के प्रभाव से,पहुंच जाती हैं,
        उसे, चित्रसेन कि आवाज़ सुनाई देती हैं, लेकिन उसे, पिछला जन्म कुच भी याद नहीं रहता, 
        उतने में सीता की सहेलियां सीता को डुंडते हुए आ जाति हैं, और सीता को अपने साथ ले जाती हैं,
        चित्रपुर के धर्म शाला मे सीता और उनकी सहेलियां सुबह के इंतजार में रुक जाती हैं,।
  जब रात होती हैं, फिर से चित्रसेन की मधुर,आवाज़, सीता को, सुनाई देती हैं, 
       और सीता आवाज़ से ही खींचते हुए रात के अंधेरे मे, सुनसान रास्ते से अकेली हि, निकल जाती हैं,।
      वो कहा चल रही, कहा जा रही इसकी उसको कुच, सुध नहीं रहती, सीता चलते_चलते, रेल्वे पटरी पर आ जाति हैं, और आगे से , रेल गाड़ी पुरी रफ्तार से, सीता की तरफ़, दौड़ते हुए आति हैं, अब रेल गाड़ी, सीता को, 
अपने आगोश मे लेने हि वाली थीं की
   आगे से,मनोज कुमार, राम के किरदार मे, सीता को बचाने के लिए आ जाता है, और सीता को बचा लेते है,
      और उसे चित्रपुर रेल्वेस्टेशन, उसके सहेली के पास पहुंचा देता है, क्योंकि उसी रात सबको अपने गांव के लिए निकलना होता है, 
         जब राम सीता को गाड़ी में बिठा देता है, तो खुद को सीता से प्यार हुआ, महसूस करता है,। 
     सीता जब हॉस्टल में वापिस आति हैं. तो उसकी मेडम. सीता पर शक करने लगती हैं. की इसका चक्कर किसी लडके से हैं.!

           और उसे लगता है, की सीता का, चलन, खराब है,
   यह सोचकर हॉस्टल की मेडम, सीता के पिताजी को बुलाती हैं, और कहती है, येक लड़की की वजह से, पूरे हॉस्टल का नाम बदनाम हो रहा है,  
इसलिए, मैं सीता को हॉस्टल से निकाल रही हू,
लेकिन उसे क्या पता, की, सीता को निंद में चलने कि आदत है,।
  सीता के पिताजी, लडकी को कोई निंद में चलने कि बिमारी है, समझ कर, बड़े डॉक्टर के पास दिखाने ले जाते है, 
   तब डॉक्टर  जॉच करके. बलराज सिंह को. कहते हैं, की सीता को किसी तरह की कोई बीमारी नहीं है और ना ही उसका किसी लड़के के सात कोई रिश्ता है.।
   तब सीता के पिताजी खुश होकर, अपने गाड़ी की, चाबी, सीता को देकर कहते है कि, ये गाड़ी लेकर घर जाओ, 
         सीता गाड़ी लेकर घर के रास्ते निकल जाती है,। इधर सीता के पिताजी डॉक्टर को बताते हैं कि सीता को निंद में चलने कि आदत है, डॉक्टर कहता है कि ये आदत खराब है,
  इससे पहले की,
 यह बात सभी को पता चल जाए, या,समाज में बदनामी हो जाए, तुम इस लडकी की शादी कर दो, 
       सीता के पिता का किरदार निभा रहे बलराज साहनी, को यह बात ठीक लगती हैं,।     
    अपनी बिटिया के लिए लडका ढूंडने, सीता के पिताजी, पुजारी के पास जाते है,।
  पुजारी कहता है, मेरी नजर में एक लडका,है,।
      बड़ा ही सुशील नेक, पढ़ा लिखा, ऐसा लडका, ढूंढने से भी नहीं मिलता, 
 पुजारी उसी राम, की बात कर रहा था, जिसने सीता को, रेल एक्सीडेंट होने से बचाया था,
      जब, सीता के पिताजी, सीता की फोटो राम के घर भेजते है, तो राम फोटो देखकर ही सीता को पसन्द कर लेता हैं,
         क्योंकि वो सीता को, पहले से, ही जानता, थां, पहचानता था, उसे याद आता है कि, मेने रेल्वे, एक्सीडेंट में, इसे बचाया था, राम झट से शादी के लिए हां, कर देता है,। 
     सीता और राम की शादी बहुत धूम धाम से होती हैं,। जब विदाई का समय आता है,।
    तो मोहम्मद रफी का गाना चलता है,।
बाबुल की दुवाये लेती जा.... जा. तुझको सूखी संसार मिले,
        जब बारात निकलती, हैं, तो लड़के वाले, रेल्वे के एक डिब्बे को फूलों से दुल्हन कि तरह सजाते है, 
        दूल्हन, दूल्हे के सात, पुरी बारात, एक सात, एक ही डिब्बे में, चित्रपुर शहर के लिए विदा होते हैं,। लेकिन सीता के पिताजी बहुत रोते हैं,।
   जब सीता ससुराल आती हैं. शादी करके. तो उसे. मुंह दिखाई की रस्म मे. सीता का नंदोई. अंगूठी भेट करता है.!

       जब आधी रात गुजर जाती हैं,। सीता को फिर से चित्रसेन कि दर्द भरी,आवाज़ सुनाई देती हैं,।
 आ.... जा... आजा तुझको पुकारे मेरा प्यार, आजा... मै तो मिटा हु, तेरी चाह में, 
         तुझको पुकारे मेरा प्यार.......
दोनों जहा की..भेंट चढ़ा दी मैंने चाह में तेरी.. 
अपने बदन कि.. ख़ाक मिलादी मैने चाह में तेरी..
   चित्रसेन के इसी गाने पर. सीता. अपने आप. खींची चली जाती हैं. और फिर.राजकुमार. चित्रसेन के किरदार में. पीछले जन्म कि यादों को ताज़ा करते हैं. 

    सीता कहती है इस जन्म मे, मैं, सिर्फ राम की हु, और राम की ही रहुंगी, इतनी बाते करके घर वापस आ जाति हैं, 
  ऐसा बहुत बार होता है,की सीता आधी रात को चित्रसेन कि कब्र पर खींची चली जाती हैं,।
            सीता का बार बार आधी रात को घर से निकल जाना, इस बात का सीता के ससुराल में सभी को, शक होने लगता हैं,।
       की सीता किसी प्रेमी से मिलने जाति है, एक बार सीता, रात के 10:30, बजे, घर से बाहर निकल गई, चित्रसेन से मिलने,
        राम किसी पार्टी में बाहर गया हुआ, था, घर में, ननद और, सास,थीं
         जब राम पार्टी से घर आता है, तो सीता के बारे में पूछता है, जब सीता घर में नहीं मिलती तो, सीता को ढूंढने निकल जाता हैं, बहुत देर ढूंढने के बाद, सीता उसे, तालाब किनारे, लकड़ी के नैया में,
बेहोश हालत में मिलती हैं, अब राम का शक और भी गहरा हो जाता हैं, और सीता से नफ़रत करने लगता हैं,
    दूसरे ही दिन राम, गुस्से मे आकर शहर छोडकर चला जाता हैं, 
       इधर सीता की सास, तमाम नौकरों को घर से निकाल देती हैं,  
        और,घर के सारे नौकरों का काम सीता को करने लगाती हैं,
      हर तरह के ताने मारकर सीता को प्रताड़ित करती हैं,
          जब सीता के पिता को यह बात पता चलती है, की लड़की को दु:ख हों रहा है,। तो उसके पिता, दौड़े चले आते है, और सीता कोअपने सात चलने के लिए कहता हैं,
           लेकिन सीता माइके जाने से साफ मना कर देती है,। क्योंकि सीता कहती है,। 
     आप ने ही कहा था,। की बेटी घर से डोली में विदा होती हैं,
     और,पति के घर से अर्थी में,। बलराज साहनी, पिता का किरदार निभाते हुए, सीता की सास को अच्छे से समझाता है,
     लेकिन सीता की सास,भला, बुरा कहकर,सीता के पिता की बैज्जती, करती हैं, सीता के पिता रोते हुए वापिस चले जाते हैं,।
      कुच दिनों बाद राम गीले शिकवे भूलकर अपने घर वापिस आ जाता हैं,
     जब वो सीता की तरफ़ देखता है,। तो सीता उसे बहुत दयनीय हालत में दिखाईं देती हैं, उसकी यह दयनीय हालत देखकर राम, अपनी मां पर क्रोधित हो जाता हैं,
     और सीता को अपने सात,इस घर से दुर, चलने के लिए कहता है,।
     सीता राम को. घर से निकलने के लिए मनाई करती हैं. राम मानता नहीं. तो उसे अपनी कसम देती हैं.! 

     उसी रात चित्रसेन कि आवाज फिर सुनाई देती हैं, और सीता जादू के प्रभाव से खींची चली जाती हैं, 
       रास्ते में सीता का एक्सिडट हो जाता हैं, फिर भी सीता सई सलामत घर वापिस आ जाति हैं,
         लेकिन अबकी बार राम उसे माफ़ नहीं करता, उसे कुल्टा पापी, बेसरम,डायन, कहकर घर से, निकाल देता हैं, 
सीता राम के पैर, छू कर घर से निकल जाती हैं
      और फिर, आशा भोंसले का यह दर्द भरा गीत चलता है,।
 वो, जिन्दगी...जो.थी.अब, तक, तेरी पनाहों में,
चली है आज. भटकने. खुदा कि राहों में,
       तमाम, उम्र के रिश्ते, घड़ी में ख़ाक, हुए,
     ना गम है, दिल में, किसी के, ना हैं,निगाओ में,
सीता इसी गाने के साथ, जंगल में भटकने लगती हैं, र एक बडे से तालाब, में कुदकर, जान देने की कोशिश करती हैं,
    लेकिन सीता का नंदोई    (याने ननद का पति)   उसे बचा लेता हैं, और पुजारी के पास ले आता हैं,।
       जब बलराज साहनी को यह बात पता चलती है कि, 
   की सीता को निंद में चलने कि, बीमारी है,। यह बात मैने तुमसे छुपाई थीं,
     एक बार चित्रपुर के रंगमहल टूर पर गई थी, और,आधी रात को, निंद में चलते हुए, रेल्वे पटरी पर आ गई थी,। 
          वो तो अच्छा हुआ, किसी भले आदमी ने उसे बचा लिया थां,,
      फिर राम के दिमाग़ वह बात याद आती हैं कि, उसे बचाने वाला मैं खुद थां,।
इसका मतलब सीता, निर्दोष हैं, निष्कलंक है, पवित्र हैं,। और मैं उस बैचारी पर शक कर बैठा,।
      इतना सोचकर राम सीता को ढूंढने के लिए निकल जाता हैं, 
        बहुत ढूंढने के बाद सीता उसे एक मंदिर में, राम की भक्ति करते हुए दिखाईं देती हैं,
      और फिर आशा भोंसले का दर्द भरा भक्ति गीत, चलता है,
 ,,  हे रोम रोम में बसने वाले राम, जगत के स्वामी हे अंतरयामी,मैं, तुझसे क्या मांगू,_मैं तुझसे क्या मांगू,
    जब राम की नजर सीता पर पड़ती हैं तो, सीता उसे अपनी आपबीती सुनाती है, और बेहोश हो जाति हैं,
   राम  बेहोसी की, हालत में सीता को अपने घर लेकर आता हैं, 
         तो राम की मां उन्हें देखकर आगबबूला हो जाति हैं, और बेटे, बहु,को भला बुरा कहकर, घर से बाहर निकाल देती हैं,।
     तो, राम सीता को सात लेकर, रेल्वे गाड़ी में बैठकर, कहीं, दूर जाकर रहने के इरादे से निकल जाता हैं,।
        रात हो जाति हैं, तो दोनों गाड़ी में छो जाते है, रास्ते में, चित्रपुर नाम का, स्टेशन, आता हैं, उस समय सुबह के 4:00, बज रहे होते हैं,।
     और,सीता को फिर से, चित्रसेन की दर्द भरी आवाज़ सुनाई देती हैं, सीता निंद से उठकर गाड़ी की चैन खींचकर गाडी को रोक देती है,
         और चित्रसेन के आवाज की  तरफ़ खींची चली जाती हैं, 
तो चित्रसेन ,नीलकमल, को देखकर कहता है,
        आओ नीलकमल, यह,चित्रसेन, रंगमहल में तुमारा स्वागत करता है, सदियोसे वीरान रंगमहल में, आज फिर से बाहर आई हैं,। 
    इसी रंगमहल में हमारी प्रेम कि दास्तान सुरु हुई, और अधूरी रह गई, 
     लेकिन आज हमारे प्रेम कि दास्तान पुरी होंगी, आज की रात जिन्दगी और मौत के संगम पर, सदियो से बिछड़े हुए, दो प्रेमियों का मिलन होंगा,
       इसी रंगमहल में, हमारे बरसो से खोए हुए नगमे, आज फिर से गूंज उठेंगे
     क्या, अभी तक तुमने, अपने आप को नही पहचाना 
    तुम्हे याद नहीं, तुम ही नीलकमल राजकुमारी हों,
देखो यह मूर्ती, आज सदियों के अंधेरे के बाद फिर से उजाले में आ रही है,।
          तुम सब कुछ भूल गई, मुझे सब कुछ याद है,। 
वो होली का दिन, वो तुम्हारा भिगा हुआ बदन, वो तुम्हारे हात में पिचकारी,
       कुच पलो के लिए सीता को, अपना पिछला जन्म याद आ जाता हैं, 
        और फिर सीता नीलकमल बनके पीछले जन्म कि यादों में खो जाति हैं,
                           
निलकमल

   
 सीता चित्रसेन कि आत्मा कि मुक्ति के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने के लिए तैयार हो जाति हैं,। 
          चित्रसेन कहता है, तुम अपने प्राणों का बलिदान दोगी, ऐसा हो नही सकता, मैं तुम्हे मरने नहीं दुंगा, क्योंकि तुम्हारे सुख में हि मेरा सुख हैं,।
         इतना कहकर चित्रसेन, की आत्मा दीवार तोड़कर, हमेशा_हमेशा के लिए निकल जाती हैं, उसकी आत्मा को मुक्ति मिल जाती है,।
          फिर सीता का पति, सीता को पुकारते हुए रंगमहल में आता हैं,
             तो देखता है, की सीता बेहोश पड़ी हुई,  कब्र की दीवार टूटी हुई, उसमे से हड्डी और जंजीरे निकलती हुई,
          और, सीता की मूर्ति टूटी हुई,यह सब नजारा देखकर वो समझ जाता हैं, की, सीता और इस आत्मा का पीछले जन्म से संबंध होंगा, और,अब,उस आत्मा को मुक्ति मिल गई है,
   यही होंगी वो आत्मा जो सीता को. उठा कर लाती थी यहां. विश्वास. थां. मेरा की.      
 सीता, निर्दोष हैं,निष्कलंक है, गंगा जल कि तरह पवित्र हैं, सीता राम की हैं,। और राम की ही रहेंगी,

 इतने में, सीता को होश आ जाता हैं,
   और दोनों हंसी खुशी घर वापिस आ जाते है, सीता की सास, अब सुधर जाति हैं, और अपने बेटे, बहु से माफ़ी मांगने लगती हैं
    अब पूरा परिवार खुश, रहता हैं,
               
            और कहानी यहीं पर खत्म हो जाति है,।
            
                       लेखक:~ भोजराज, गोलाईत ,
        

      
         
      
       

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