देवानन्द, जी की फिल्मी, दुनियाdevaanand, jee kee fhilmee, duniya

देवानंद, जी की फिल्मी, दुनिया
1960 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री पर राज कपूर दिलीप कुमार और देवानंद साहब का। सिक्का
चलता था।
        एक तरफ दिलीप कुमार गंभीर किरदार निभाने वाले सुपरस्टार  थे। वही राज कपूर बड़े ही चुलबुले रोल करते। नज़र आते थे 
         रोमांस स्टाइल और दिल को छू लेने वाले रोल्स सिर्फ देवानंद साहब को ख़ूब भाते थे। यही वजह है कि देव आनंद के आज भी लाखों दीवाने हैं जिन्हें आज भी रोमांस का बादशाह कहा जाता है।
              ऐसे में आज हम आपको देवानंद साहब की शुरुआती जीवन और उनके गांव से रूबरू करवाएंगे कि आखिर उन्होंने कब और कैसे इंडस्ट्री में अपना नाम बनाया,।
              तो चलिए बिना वक्त गंवाए शुरू करते हैं। सुपर स्टार देवानंद साहब की जीवन कहानी,
             देवानंद अपने दौर के मशहूर अभिनेता, थें देव आनंद साहब का जन्म 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर में हुआ था, और जब तक देवानंद साहब। थे तब तक उन्होंने अपने आपको अपने गांव से जोड़े रखा और अक्सर ही वह अपने गांव आया जाया करते थे।    
देवानन्द, जी की फिल्मी, दुनिया
 देवानंद का असली,नाम ,धरमदेव, ,किशोरीमल आनंद है, किशोरीमल  देवानन्द के पिता थे,।लेकिन उन्हें बॉलीवुड में देवानंद के नाम से ही जाना जाता था। 
            
 बात करते हैं। देव आनंद जी की पत्नी की जिनका कल्पना कार्तिक नाम थां,। 19 सितंबर 1930 को लाहौर के पंजाबी श्याही परिवार में जन्मी कल्पना जी का असली नाम मोना था। उनके पिता गुरदासपुर में तहसीलदार थे जो पटवारी के बाद शिमला में आकर बस गए थे
   
कल्पना कार्तिक ने कई फिल्मों में बतौर मुख्य नायिका के रूप में काम किया, जिनमें से एक थीं, टैक्सी ड्राइवर,एक दिन इसी फिल्म की शूटिंग की। तैयारियों के चलते, देव आनंद ने कल्पना कार्तिक से शादी कर ली थीं,

वर्ष 1957 में आई फिल्म, नौ दो ग्यारह सहित बतौर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक ने कुल छह फिल्मों में अभिनय किया। बाद में उन्होंने नवकेतन की कई फिल्मों में एक सहयोगी निर्मान करता बनके  काम, करती रहीं,।
 
देवानंद और कल्पना कार्तिक की दो संतान है। बेटा सुनील आनंद,और बेटी देवीणा आनंद,सुनील आनंद का जन्म 1956 में इंग्लैंड में हुआ था,।
 फिल्मों में काम करने के बाद सुनील ने अपने पिता देवानंद की फिल्मों के निर्माण के दौरान उनका भरपूर सहयोग किया। 
 
 देवानंद की बेटी का नाम देवीणा आनंद है जिनकी शादी हुई थी, बाबी नारंग से ,जो एक पायलट थे, 
 
देवानंद के कुल चार भाई थे। जिनमेसे सबसे बड़े भाई, थे,।मनमोहन आनन्द जो कि एक एडवोकेट थे। मनमोहन आनंद फिल्मों से दूर ही रहे। 
       दुसरे नम्बर पर थे, चेतन आनंद 3 जनवरी, 1915 को पंजाब के गुरदास में जन्मे चेतन की शिक्षा दीक्षा लाहौर में हुई। बाद में उन्होंने  स्कूल में शिक्षक के रूप में कार्य किया। 
       उनका फिल्मी सफर वर्ष 1944 में आई ,फिल्म राजकुमार, से येक्टिंग की सुरूवात की बाद में उन्हें निर्देशन का मौका। मिला,
 6 जुलाई 1997 को चेतन आनंद जी का देहांत हो गया था। 
      आनंद जी के सबसे छोटे भाई थे। विजय आनंद जिनका जन्म 22 जनवरी 1934 को लाहौर में हुआ था। विजय ने मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के दौरान ही नाटकों के स्क्रिप्ट लिखनी शुरू कर दी थी। 
          विजानंद गोल्डी आनंद के नाम से भी मशहूर थे। वे 60 और 70 के दशक के बेहद सफल निर्देशक रहे। विजय आनन्द ने कई फिल्मों में काम किया है। 90 के दशक में दूरदर्शन पर आने वाले जासूसी धारावाहिक तहकीकात में उन्होंने। डिटेक्टिव सेंस की भूमिका निभाई थी
          23फरवरी 2004को दिल का दोहरा पड़ने से विजय आनन्द का निधन हों गया था
       
देवानंद की बहन का नाम है, सिलकांता कपुर, थां, जिनकी शादी कुलभूषण कपूर से , हुई थी
यह थीं देवानंद के परिवार की स्टोरी

देवानन्द साहब ने,अंग्रेज़ी साहित्य में 1942 में लाहौर से डिग्री हासिल की थी। देवानंद आगे की पढ़ाई करना चाहते थे, लेकिन उनके पिता ने कह दिया था कि उनके पास पैसे नहीं है। उन्हें पढ़ाने के लिए, अगर वह आगे पढ़ना चाहते हैं तो नौकरी करके पढ़े
              यही से उनका और बॉलीवुड का सफर शुरू हुआ। 1943 में अपने सपनों को साकार करने के लिए जब वह मुंबई पहुंचे तब उनके पास मात्र 30 रू,थे और रहने के लिए कोई ठिकाना भी नहीं था। 
              साहब ने मुंबई पहुंच कर रेलवे स्टेशन के पास एक सस्ते से होटल में कमरा किराए पर लिया। उस कमरे में उनके साथ तीन और लोग रहते थे जो कि उन्हीं की तरह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे। 
              काफी दिन यूं ही गुजर गए। उनके पास पैसे भी खत्म हो रहे थे और जब उन्होंने सोचा कि अगर उन्हें मुंबई में रहना है तो नौकरी करनी ही पड़ेगी। 
              काफी मशक्कत के बाद उन्हें मिलिट्री सेंसर ऑफिस में क्लर्क की नौकरी मिल गई। 
        देवानन्द का काम, सैनिकों की चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़कर सुनाना होता था। मिलिट्री सेंसर ऑफिस में देवानंद को 165 रू,मासिक वेतन मिला करता था। इसमें से 45रू, वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज देते थे,।
               लगभग। 1 साल तक मिलिट्री। सेंसर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास चले गए जो उस समय भारतीय जन नाट्क,संघ से जुड़े हुए थे। 
               उन्होंने देवानंद को भी अपने साथ इसी में शामिल कर लिया,और इसी बीच देवानंद ने नाटकों में छोटे-मोटे रोल करने शुरू कर दिए।      
               देवानंद को पहला ब्रेक 1946 में प्रभात स्टूडियो की फिल्म, हम एक हैं, से मिला था। हालांकि फ़िल्म फ्लॉप होने से दर्शकों के बीच वह अपनी पहचान नहीं बना सके थे।
                इस फिल्म के निर्माण के दौरान ही प्रभात स्टूडियो में उनकी मुलाकात गुरुदत्त से हुई थी जो उस समय फिल्मों में कोरियोग्राफर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाह रहे थे।
                 साल 1948 में प्रदर्शित फिल्म, जिद्दी, देवआनंद के फिल्मी करियर की, फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी,

           फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में, अपना पहला कदम रखा और नवकेतन बैनर की स्थापना की। नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म ,अफसर,का निर्माण किया, जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी थी। 
               इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी-मानी एक्टर, सुरैया का चयन किया था। जबकि अभिनेता के रूप में देवानंद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से असफल रहे थें। 
               देवानंद ने अपनी अगली फिल्म बाजी के निर्देशन की जिम्मेदारी गुरुदत्त को सौंप दी थीं,         
               बाजी फिल्म की सफलता के बाद देवानंद फिल्म इंडस्ट्री में एक अच्छे अभिनेता के रूप में शुमार होने लगे।
                इसी बीच देवानंद ने ,,मुनिमजी। ,,दुश्मन, काला बाजार, सीआई डी, पिन गेस्ट ,,गैंबलर,, तेरे घर के सामने, और,कालापानी जैसी कई सफल फिल्मों में काम किया।
                 फिल्म अवसर के निर्माण के दौरान देवानंद का झुकाव,फिल्म अभिनेत्री सुरैया की ओर होने लगा था। एक गाने की शूटिंग के दौरान देवानंद और सुरैया की नाव पानी में पलट गई थी, जिसमें उन्होंने सुरैया को डूबने से बचाया था। 
                 इसके बाद सुरैया देवानंद से बेइंतहा मोहब्बत करने लगी थी, लेकिन सुरैया की दादी की इजाजत ना मिलने पर यह जोड़ी टूट गई थी। 
                 1954 मे,देवानंद ने अपने जमाने की मशहूर अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली। थीं,
                  वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ। तब देवानन्द उन लोगों में से एक थें, जो उनके जनाजे के साथ थे। 
                  हालांकि साल 2001 में देवआनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण पुरस्कार सम्मान प्राप्त हुआ,और साल 2002 में उनके द्वारा हिंदी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए,           
                  देवानन्द को, "दादा,. साहेब; फाल्के" पुरस्कार से. सम्मानित, किया गया, थां.!
                   और इन सभी के बाद 3 दिसंबर 2011 को इस सदाबहार अभिनेता ने लंदन में अपनी अंतिम सांस ली। 
                   आपको देवानंद साहब के गांव और उनके शुरुआती जीवन से रूबरू होकर कैसा लगा। आप अपनी राय हमें कमेंट करके जरूर बताएं।

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